मनोज सिंह से साक्षात्कार, एम.फिल (हिन्दी) की शोद्यार्थी

Interview by Anjum Abbas

प्रश्न: एक इंजीनियर होते हुए भी आपको हिन्दी में लेखन की प्रेरणा कहाँ से मिली?

उत्तर:-भाषा अभिव्यक्ति का केवल माध्यम है। भाषाएं कभी भी मंजिल नहीं हो सकती। जिस भाषा के द्वारा हृदय स्पंदन करें, जिस कल्पना से हदप प्रफुल्लित हो, जिसमें आपका हृदय विचलित करे, भावनाएं व कल्पनाएं मुखरित होती हो, उसी भाषा का प्रभाव ज्यादा अच्छा होता है। मैं अपनी मातृ भाषा के माध्यम से आज भी स्पवित होता हूँ। मेरा हृदय, मेरी कल्पनाएँ, मेरे विचार सभी हिन्दी में ही आते हैं, हिन्दी ही उनका माध्यम है। प्राकृतिक भावनाएं केवल हिन्दी में ही अभिव्यक्ति पाती है। हिन्दी के अलावा किसी और भाषा के प्रति ऐसा लगाव नहीं है। लेखन की प्रेरणा महादेवी वर्मा जी से मिली है। बचपन से ही काव्य सर्जन में मन रमता था। स्कूल के दिनों में एक जव्यापक जो दोहों इत्यादि को गाकर पढ़ाते थे, से विशेष रूप से प्रभावित हुआ। पुरानी हिन्दी फिल्में विशेष र्प से मीना कुमारी को फिल्में बहुत पसन्द आती थी। मातृ भाषा में लेखन को एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया है।

प्रश्न: लेखन की किन किन विधाओं में लिखते हैं और क्यो?

उत्तर:-लेखन की दोनों विधाओं अर्थात गद्य व पय में लिखता हूँ। समाचार पत्रों में फीचर इत्यादि भी लिखता रहता हूँ। मन की भावनाओं व विचारों को वाणी देने के लिए कलम चलाता हूँ। कहीं हृदय गहरे कोने में सदैव साहित्य और कविता के प्रति मेरा लगाव मुझे इस लेख को और प्रेरित करता रहता है।

प्रश्न: आपकी रचना में जीवन की अनुभूति दृष्टिगोचर होती है,इसका कारण?

उत्तरः- मेरे काव्य में जीवन की अनुभूति मुखरित हुई है। भारत के विभिन्न स्थानों में कार्य करने का सौभाग्य मिला। शिक्षा दीक्षा भी देश के भिन्न स्थानों पर हुई नये नये स्थान में जीवन व्यतीत करने से अनुभव व ज्ञान विस्तार के साथ व्यक्तित्व में भी निखार आया भारतीय जीवन की विविधता को देखने व जीवन को भरपूर रूप से जीने का आनन्द प्राप्त हुआ जीवन के अनुभव व अनुभूति को वास्तविकता व कल्पना के मिश्रण के माध्यम से अभिव्यक्त करने का प्रयत्न करता हैं।

प्रश्न: आपके काव्य में प्रेम की च्या, स्त्री सम्बन्धों की रचना वड़े मावपूर्ण ढंग से है, क्यों?

उत्तर :-जीवन में प्रेम के इलावा सब बेकार है। प्रेम स्त्री से हटकर नहीं किया जा सकता। इसलिए में स्त्री की अहम् भूमिका जीवन में स्वीकार करता हूँ। पति पत्नी का सम्बन्ध तो स्थापित है इसके इलावा में मानता हूँ कि प्रेम माँ, बहन, पत्नी, प्रेयसी, सखी, दासी, परिचायिका आदि के माध्यम से भी भिन्न-भिन्न आदर्श रूपों में किया जा सकता है। स्त्री व पुरूप में प्राकृतिक संबंध है और इसका आधार प्रेम है। जिसे में लेखन में स्वीकार करता?

प्रश्न: हिन्दी साहित्य के विषय में आपके क्या विचार है?

उत्तर:-हिन्दी साहित्य दिल की गहराईयों तक असर कर जाता है। हिन्दी साहित्य में वह लयवद्धता देखने को मिलता है जो हृदय को छ जाने का सामर्थ्य रखती है।

प्रश्न: आपकी रचनाओं में संगीत का भी पुट है, क्या आप संगीत में भी सचि रख्ते?

उतर:-संगीत के प्रति बेहद लगाव है। गायन व वादन दोनों विधाओं में रूचि है। विशेषकर वादन में केसियों इत्यादि वजा लेता हूँ और उसी पर कुछ रचनाओं को संगीतबद्ध भी किया है।

प्रश्न: आपके काव्य में अनुभूति व आंकिक सन्तुष्टि की चर्चा है इससे आपका क्या तात्पर्य है? 

उत्तर:- बुद्धि के मार्ग से ईश्वर की प्राप्ति कदापि नहीं हो सकती है। प्रकृति के माध्यम से ईश्वर तक पहुंच जा सकता है और जो प्राकृतिक है, वह प्रेम है। प्रेम की पराकाष्ठा में ही आलौकिक की अनुभूति है। जब प्रेम अपनी चरम सीमा पर पहुँच जाता है तो वह सांसारिक सीमाओं को लांघ कर ईश्वरीय हो जाता है।

प्रश्न: आपने सौदर्य को लौकिक व आलोकिक पक्ष में प्रस्तुत किया है। जप इनमें से किसको व्यक्ति के अधिक करीब समझते है?

उत्तरः-लौकिक व आलौकिक दोनों पक्षों की अपनी महत्ता है आलीकिक की प्राप्ति हेतू लीकिक पक्ष की अनिवार्यता को नकारा नहीं जा सकता है। सांसारिक मार्ग के माध्यम से ही ईश्वरीय प्रेम की प्राप्ति हो सकती है।

प्रश्न: चन्द्रिकोल्सद भावनाओं का काव्य है, कारण?

उत्तर:-भावुक व्यक्ति सामाजिक भावनाओं से प्रेरित होता है। भावनाओं के साथ-साथ विचारों का अकुंश भी आवश्यक है जिसे में लेखन में स्वीकार करता हूँ?

प्रश्न: क्या आप सेखन के क्षेत्र में कार्यरत हैं? यदि हां तो वो क्या है?

उत्तरः-हां उपन्यास लिख रहा है। यह एक सामाजिक उपन्यास है जो कि शिक्षित वर्ग के पात्रों को लेकर लिखा जा रहा है उपन्यास की नायिका मनोरोगी है। इस उपन्यास में उसकी मनोदशाओं व समस्याओं का चित्रण किया गया है। उपन्यास का नाम बंधन है। गद्य विद्या में लेख भी लिखता रहता हूँ।