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चांद पर रोबोटिक नृत्य की अमावस

माइकल जैक्सन से लेकर बराक ओबामा के बीच अमेरिका ने एक लंबा सफर तय किया है। माइकल जैक्सन, अश्वेत अमेरिका का प्रतिनिधित्व करने वाला न तो पहला महत्वपूर्ण व्यक्ति था न ही कोई क्रांतिकारी युग पुरुष, मगर उसका जीवन व उसकी उपलब्धियां जाने-अनजाने ही एक ऐसा संदर्भ बन गई, उससे संबंधित घटनाक्रम अश्वेत इतिहास का एक ऐसा विशिष्ट मोड़ बन गया, जहां पर आकर एक काले ने गोरों के दिलों पर राज करना आरंभ कर दिया। इसका प्रभाव इतना व्यापक और गति इतनी तीव्र थी कि अमेरिका ही नहीं आर्थोडोक्स (पारंपरिक) यूरोप के सफेद रंग में पुते वर्चस्व व अहम्‌ के मजबूत किले भी ढह कर बिखर गए। माइकल जैक्सन की आवाज सात समंदर पार एशिया में, अंग्रेज भक्त आधुनिक युवा वर्ग से लेकर गरीब बस्तियों तक में भी गूंजने लगी और वह पीली त्वचा वाले साम्यवादी चीन एवं मशीनी जापान की गलियों में भी नृत्य करने लगा। जिसे उनके गीतों के बोल समझ आए उनका दिल-दिमाग तो स्पंदित हुआ ही जिनको कुछ न समझ आया उनके पैर अनियंत्रित होकर अनायास ही थिरकने लगे। माइकल जैक्सन के संगीत-गीत-नृत्य ने भाषा की सभी सीमाएं तोड़ दीं और वह विश्व परिवार के घर-घर में प्रवेश कर गया। संगीत में दृश्य (विजुअल) का असरदार प्रभाव, संक्षिप्त व सरल भाषा में एलबम का प्रचलित युग माइकल जैक्सन से आरंभ हुआ माना जा सकता है। टेलीविजन की दुनिया को बाजार के शिखर पर पहुंचाकर बिठाने में उनके योगदान को खुद मीडिया नकार नहीं सकता। विशेषकर एमटीवी को सफल बनाने में, एक संपूर्ण इंटरटेनर के रूप में काम करने वाले वो पहले शख्स बन गए।

जैक्सन द्वारा तीव्र गति को प्राप्त हुआ अश्वेतों का विजय अभियान बराक ओबामा पर आकर एक और महत्वपूर्ण मोड़ पर मुड़ गया, जहां उसने दिल के साथ-साथ दिमाग पर भी राज करना प्रारंभ किया। यहां भी दोनों के बीच फर्क करें तो बाजी माइकल जैक्सन के पक्ष में दिखाई पड़ती है। दोनों सामान्य परिवार से शिखर पर पहुंचे, स्वयं की मेहनत से। लेकिन जैक्सन तीन दशक पहले के होते हुए भी बराक ओबामा से एक कदम आगे चले गए प्रतीत होते हैं। ओबामा की राजसत्ता अमेरिका की सीमाओं तक सीमित है, वो भी कुछ समय के लिए। कम से कम चार वर्ष अधिक से अधिक आठ वर्ष। यहां सर्वशक्तिशाली राष्ट्र के राष्ट्राध्यक्ष को विश्व शिखर पर बैठकर अप्रत्यक्ष रूप से संसार पर राज करने के झूठे अभिमान का अहसास हो सकता है, लेकिन यहां भी तर्क-वितर्क और विरोध संभव है। मगर माइकल जैक्सन विश्व पॉप का चक्रवर्ती सम्राट तमाम उम्र बना रहा। कोई चुनौती नहीं। एकछत्र राज्य। हां, काले रंग की हीन भावना दर्द बनकर जहां माइकल जैक्सन को सदैव सताती रही और वह उसे सह न पाये, उससे दूर भागते रहे, यही नहीं कृत्रिम गोरा बनने की चाहत उनकी बर्बादी का कारण भी बनी, वहीं बराक ओबामा अपने काले रंग को लिये-लिये गर्व के साथ जी रहे हैं और इतिहास बना दिया। फिर भी अगर बराक राष्ट्राध्यक्ष का ताज पहनने वाले अमेरिका के पहले अश्वेत बादशाह हैं तो माइकल विश्व पॉप का बेताज बादशाह था। एक ऐसे सिंहासन पर उसका एकाधिकार था जिस पर कुछ वर्षों बाद चुनाव के द्वारा किसी को हटाया या बिठाया नहीं जाता।

महान संगीतकार स्वर्गीय एल्विस प्रेस्ले पश्चिम में अपनी एक महत्वपूर्ण पहचान बना गए, बीटल्स को चाहने वाले यहां भी हैं वहां भी हैं और मैडोना और ब्रिटनी स्पीयर्स के सौंदर्य नृत्य पर मर मिटने वाले युवा हर देश में मिल जाएंगे मगर गली-गली, गांव-गांव में रंग, भाषा, नस्ल, जाति, समाज, देश, संस्कृति और संस्कारों को तोड़ता जिस शख्स ने हर उम्र, लिंग और वर्ग पर बिना शर्त राज किया वो माइकल जैक्सन ही था। यह प्रभाव इतना गहरा था कि ठाकरे परिवार यहां सबसे उपयुक्त उदाहरण हो सकता है। इस विशिष्ट व महाराष्ट्र की राजसत्ता में अपनी पकड़ बनाए रखने में प्रयासरत परिवार के सदस्यों की क्षेत्रीय/भाषायी राजनीति यहां दम तोड़ती प्रतीत होती है। यह अन्य इसी तरह के समानांतर विचार वालों के लिए एक सबक से कम नहीं। देश ने, मराठी भाषा के नाम पर अपने ही देशवासियों के साथ दुर्व्यवहार करने वाले शख्स को माइकल जैक्सन की अंग्रेजी भाषा, संस्कृति और वेशभूषा के बावजूद एयरपोर्ट के बाहर उसका इंतजार करते देखा है। चलो, ठाकरे परिवार ने हिन्दुस्तान के लिए कम से कम एक काम तो किया कि एक ऐतिहासिक अद्भुत सितारा को भारत लाकर यहां की सांस्कृतिक विविधता वाली जमीन पर खड़ा कर दिया और फिर जिसे देखकर न जाने कितने हिन्दुस्तानी माइकल जैक्सन तो नहीं माई का लाल जयकिशन जरूर पैदा हो गए होंगे।

विगत सप्ताह पाश्चात्य संगीत का एक युग समाप्त हुआ। अब हमें चांद पर चलने वाला जटिल वस्त्रधारी, विशिष्ट सैनिक वर्दी की जैकेट पहने ब्रेक डांस करता रोबोट दिखाई नहीं देगा। जिसकी पैंट के ऊपर अधोवस्त्र और जूतों के साथ मोजों का दिखाना एक फैशन बन गया था। कइयों को उसकी आवाज में बिल्ली की चीख सुनाई देती, अधिकांश को यह समझ न आता मगर उसके पैरों को हवा में सहजता से यंत्रवत उछलता-कूदता देख लोग बाकी सब भूल जाते। ऐसा प्रतीत होता है कि कोई स्प्रिंग की मदद से स्टेज पर नृत्य कर रहा है। यह दृश्य अद्भुत होता। वह करिश्माई व्यक्तित्व का धनी था। एक बार फिर माइकल जैक्सन अपनी जादुई अदा के साथ पचास की उम्र में ‘दिस इज इट’ के साथ लंदन से अपना वर्ल्ड टूर प्रारंभ करके संगीत नृत्य की दुनिया में वापसी करने वाला था। उसकी लोकप्रियता का इससे बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है कि सनसनी और बेहूदगी करके टीवी व सिनेमा में जबरन दर्शक घसीटन के युग में भी कुछ ही घंटों में इस कार्यक्रम की सारी टिकटें बिक चुकी थीं। मगर थ्रिलर (1982) से पहचाना जाने वाला माइकल जैक्सन बैड (1987) और डेंजरस (1999) क्या बना, उसके बाद ईश्वर ने उसे ‘ऑफ द वॉल’ (1979) ही कर दिया। ईश्वर की महिमा अपरम्पार है। क्या पता उसने अपने प्रिय पात्र माइकल जैक्सन को एक लचर प्रदर्शन करने से पूर्व ही दृश्य से हटा लिया और उसे असफल बदनामी से बचा लिया।

असाधारण कलाकार सामान्य मनुष्य नहीं होते, आम जीवन उन्हें रास नहीं आता। वो भिन्न होते हैं और रहते हैं। तभी तो काल्पनिक दुनिया का सृजन कर पाते हैं। यह बात माइकल जैक्सन के व्यक्तित्व, वेशभूषा, जीवनशैली से आसानी से समझी जा सकती है। यह जैक्सन का प्रभाव ही है कि उसे गुरु मानकर शिष्य परंपरा मात्र निभाने से दक्षिण भारतीय प्रभुदेवा ने वर्षों भारत की फिल्मों पर सिर्फ नृत्य की बदौलत राज किया।

एक जमाना था जब माइकल जैक्सन मीडिया के लिए एक मुख्य शिखर पात्र थे। उनकी कहानियां कुछ गढ़ी जाती, कुछ जबरन बनाकर फैलाई जाती, रसदार मसाले में लपेटकर। इसमें कोई शक नहीं कि मीडिया ने उन्हें इतना लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की, लेकिन मीडिया ने कोई अहसान नहीं किया था, यह उसके लिए फायदे का सौदा था। माइकल जैक्सन इस सफलता व लोकप्रियता का हकदार था। खूब कमाई करने के बावजूद मीडिया ने बदले में उसकी भरपूर कीमत वसूल की। मीडिया ने ही उसे खलनायक बना दिया। जबकि जैक्सन ने उतनी ही गलतियां की थीं जितना पश्चिम का एक आम इंसान किया करता है। मगर शायद बड़े होने की कीमत उन्हें चुकानी पड़ी। फिर शायद मीडिया के इस मायाजाल और चाल को वो समझ भी न सके और उसमें उलझकर अपने आप को अकेला करते चले गए। बाजार का गणित एक ऐसा चक्रव्यूह है, जहां मीडिया को किसी को डूबोने में भी मजा आता है। उसे अपने व्यवसाय के सामने व्यक्तिगत व सामाजिक हित की चिंता नहीं होती। इस भूल-भुलैया से बाहर निकलने के लिए खुद ही आदमी को प्रयास करने पड़ते हैं। जिसमें यकीनन माइकल जैक्सन असफल रहे। बीच में वो मीडिया के लिए बिकाऊ नहीं रह गए थे। मगर उनकी मौत ने अमेरिका को कैनेडी के बाद इतना स्तब्ध किया कि स्वार्थी बेशर्म मीडिया को एक बार फिर नया चरित्र मिल गया। जबकि पात्र मर चुका था। मीडिया ने एक बार फिर उनकी मौत को भी अपने लिये एक प्रमुख बिकाऊ घटनाक्रम बनाने की सफल कोशिश की। यहां भी जाने-अनजाने ही उनके नकारात्मक पक्ष को खूब उछाला गया। इन सबके बावजूद चिरनिद्रा में सोते हुए भी विश्व अखबार के प्रथम पृष्ठ पर वो एक बार फिर उभर आये। हमेश जिंदा रहने के लिए। हमारी यादों में। इतिहास के पन्नों पर। समय के साथ-साथ। पता नहीं, भविष्य में कोई मून वॉक कर भी पाता है या नहीं?