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आज की कमजोर युवा पीढ़ी

लेख का शीर्षक पढ़कर आज की युवा पीढ़ी भड़क सकती है। आजकल वैसे भी बात-बात पर भड़कने का फैशन चला हुआ है। मुझे बूढ़ा, खूसट और घमंडी घोषित कर सकती है जबकि बूढ़ों के वर्ग में शामिल होने में मुझे अभी कुछ एक दशक लगेंगे। वैसे इसमें कोई शक नहीं कि आज की पीढ़ी अधिक सूचनाओं से लदी है, सतर्क है, होशियार है। छोटे-छोटे बच्चे भी अपनी उम्र के हिसाब से अधिक जानकारी रखते हैं और स्मार्ट हैं। लेकिन कहीं-कहीं महसूस होता है कि उनमें गहराई की कमी है, स्थायित्व नहीं है, जल्दी से गुमराह हो जाते हैं और बहुत हद तक भावनात्मक रूप से कमजोर और अकेले भी हैं। वैसे तो किसी भी दो पीढ़ियों में अंतर होना स्वाभाविक है। सब समय का फेर है। समय के साथ सब कुछ परिवर्तनशील होता है और पीढ़ियां अलग-अलग समय पर सांसे लेती हैं। परिवर्तनशीलता प्रकृति का नियम है लेकिन विज्ञान ने इसमें तीव्रता ला दी है। मगर यह तीव्रता नियंत्रित होनी चाहिए। अनियंत्रित होने पर दुर्घटना की संभावना होती है। और आज की तेज भागती युवा पीढ़ी के साथ यही हो रहा है। अब हर एक नयी खोज तत्कालीन मनुष्य के रहन-सहन, सोच, जीवनशैली में परिवर्तन ला देती है। आज की नयी पीढ़ी के साथ हर रोज नये-नये इलेक्ट्रॉनिक उपकरण होते हैं जो पहले से बेहतर होते हैं और तभी दो पीढ़ियों में यह अंतर और अधिक दिखता है। पूर्व में बाजार की इतनी तेज रफ्तार नहीं थी इसलिए पीढ़ियों में मामूली फर्क होता था, जो कुछ हद तक निभ जाता था। मगर आज तो एक दिन में एक नया इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट आकर सब कुछ बदल देता है तभी तो तत्कालीन पीढ़ी भी बदल जाती है। आज पीढ़ियों के बीच अंतर अधिक है। इसके साथ ही मजेदार बात है कि हमेशा से एक पीढ़ी दूसरे को कभी पसंद नहीं करती, जिसके कारण और भी हैं। असल में हरेक पीढ़ी अपने वर्तमान काल में जीती है और उसके अच्छे-बुरे की साझेदारी करती है। पीढ़ियों का स्पष्ट अंतर देखना हो तो घर में ही बाप-बेटे, दादाओं को देखा जा सकता है। एक ही खानदान का होते हुए भी हरेक को दूसरे से शिकायत होती है। इसके बावजूद कुछ विशेष गुण-दोषों से संबंधित पीढ़ी को जुदा नहीं किया जा सकता। जो अधिक नोटिस में आती है। मेरे मतानुसार आज की युवा पीढ़ी अपने को जितना भी आधुनिक कहे परंतु व्यक्तित्व के स्तर पर कमजोर होती जा रही है। वैसे भी आधुनिकता गुण नहीं यह तो समय पर सबसे ताजा होने का प्रतीक मात्र होता है। जो वर्तमान है वह भूत से तो आगे होगा ही। और जो नया होगा वो यकीनन आधुनिक होगा। मगर गलती से आधुनिक होने को बेहतरी व अच्छा होने से जोड़ा जाने लगा जो कि सरासर गलत है। इसीलिए अगर कोई पीढ़ी आधुनिक होने का दंभ भरती हैं तो यह कोई विशेष उपलब्धि नहीं। लेकिन दूसरी तरफ उसे अपनी कमजोरियों पर स्पष्टीकरण देना पड़ सकता है।

पिछले महीने चंडीगढ़ मेडिकल कालेज के एक छात्र ने आत्महत्या कर ली। फलस्वरूप कालेज में माहौल गमगीन रहा। यह दूसरी आत्महत्या थी। कालेज का वार्षिक सांस्कृतिक कार्यक्रम रद्द कर दिया गया। जबकि आयोजन के विशाल व भव्य होने की आशा थी। जिसकी तैयारियां जोर-शोर से चल रही थी। मगर सब पर पानी फिर गया। मां-बाप का सदमे में पहुंचना स्वाभाविक था। जितनी उम्मीद लेकर वे इतने वर्षों से बेटे के डाक्टर बनने का इंतजार कर रहे होंगे उतना ही अब निराशाभरा शेष जीवन होगा। उधर, छात्र के दोस्त-यार दुखी थे। मीडिया में पेपरबाजी हुई वो अलग। कुछ प्रोफेसरों पर लांछन लगा। और सवाल-जवाब के स्पष्टीकरण में मूल घटना दब गई। इसी बीच हमारे कार्यालय में एक अधीनस्थ अधिकारी की होनहार लड़की ने सिर्फ इसलिए आत्महत्या कर ली कि उसका प्रोफेसर उसे फोन पर तंग किया करता था। सच क्या है माता-पिता भी दावे से नहीं कह सकते। लेकिन ऐसा अंदेशा जरूर जाहिर किया गया। और अब उनका जीवन बोझिल है। एक बेहतरीन अधिकारी आजकल ऑफिस में जीवन से रिटायर हुए प्रतीत होते हैं। मेरी भतीजी जो दंत चिकित्सा में डाक्टरी कर रही है, के एक सहपाठी ने सिर्फ इसलिए नदी में कूदकर आत्महत्या कर ली कि कुछ दिन पहले उसके माता-पिता ने किसी छोटी-सी बात के लिए उसे टोका था। ऐसे कई और उदाहरण आपको स्थानीय समाचारपत्रों में रोज से मिल जाएंगे, जिनकी संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। पूर्व में ऐसी द्घटनाएं न के बराबर सुनाई देती थी।

आज का युग पिछली पीढ़ियों के मुकाबले तेज रफ्तार का है। इसमें कोई शक नहीं। तुरंत भोजन, तुरंत यात्रा, तुरंत प्रमोशन, तुरंत पैसा, रातों-रात अमीरी, सब कुछ फास्ट फारवर्ड की तरह चाहिए। तो यह आधुनिक पीढ़ी मौत को भी गले लगाने में तुरंत फैसला करती दिखाई देती है। एक वजह तो यही आम समझ आती है। दूसरी अगर हम ध्यान से देखें तो इनमें सहने की शक्ति कम होती चली जा रही है। स्वयं को सर्वश्रेष्ठ या समझदार मानने वाली यह पीढ़ी यह नहीं जानती कि जीवन के रहस्य को इतनी आसानी से नहीं समझा जा सकता। उतार-चढ़ाव तो जीवन की सच्चाई है। सुख-दुःख एक ही सिक्के के पहलू है। एक के बिना दूसरे का अस्तित्व नहीं। मगर एसएमएस पर निर्भर युवा पीढ़ी, जीवन को मोबाइल के मैसेज की तरह डिलीट करना समझती है।

इस दुनिया से परेशान होकर, रूठकर जाने वाले निराशावादी होते हैं। सच तो यह है कि जो इस खूबसूरत दुनिया की खूबसूरती को नहीं देख पाया, समझ पाया, वो उस दुनिया में क्या कर पाएगा। हार-जीत तो जीवन का नियम है। किसी की जीत तभी सुनिश्चित हो सकती है जब किसी की हार होगी। और यह हार आपके साथ भी हो सकती है। हर जीत के लिए बेकरार आज की युवा पीढ़ी यह क्यूं नहीं समझती कि हार का भी तो उस पर उतना ही हक है। परंतु हर हार के बाद जीत की कोशिश में एक बार फिर लड़ने के लिए तैयार करने की अपेक्षा अपने जीवन को समाप्त कर लेना मेरे मतानुसार कायरता है, कमजोरी है, अपरिपक्वता है, नासमझी है। फास्ट फूड की तर्ज पर लिया गया एक क्षणिक निर्णय है। जो सेहत के लिए फायदेमंद न होते हुए भी, आज, नूडल्स की तरह ही धड़ल्ले से बिक रहा है और खाया जा रहा है।

आज इस तरह की आत्महत्याओं की बाढ़-सी आई हुई है। प्रेम में थोड़ी-सी असफलता, परीक्षा में कम नंबर आना, मां-बाप का किसी भी चीज के लिए रोकना-टोकना, पैसे की तंगहाली से तुरंत आत्महत्या की खबरों को पढ़ना एक आम बात हो गई है। जबकि प्रेमी-प्रेमिका के धोखे से जीवन बर्बाद करने से अच्छा है धन्यवाद करना कि समय रहते सब पता चल गया। फिर तू नहीं तो कोई और सही, के सिद्धांत में क्या खराबी है। समय के साथ हर द्घाव मिट जाते हैं। मगर आज की युवा पीढ़ी इस बात को समझने को तैयार नहीं कि ये जीवन के रंग हैं। हर सुबह के बाद अगर रात है तो फिर एक नयी सुबह आगे कतार में खड़ी इंतजार कर रही होती है। बस इतनी-सी समझदारी चाहिए कि आप कुछ पल का इंतजार कर सके। मगर बेकरार युवावर्ग इस छोटे से सिद्धांत को समझने के लिए तैयार नहीं और वो अपने जीवन को खेल समझता है और पीछे छोड़ जाता है बहुत सारे गमों के निशान। समय पर तेज रफ्तार से दौड़ रहा युवा वर्ग एक ठोकर से जमीन पर गिरकर रेत में मिल जाता है उठकर खड़ा भी नहीं हो पाता। ऊपर जाकर भी उसे क्या तसल्ली मिलती होगी जब वो नीचे आराम से न रह सका। असल में इनमें सहनशीलता की कमी है। अगर आज की युवा पीढ़ी को अपने आपको पहले से बेहतर साबित करना है तो उसे निरंतर लड़कर और फिर जीतने की कोशिश में जीवन बिताना होगा। जीवन पलायन नहीं, एक और प्रयास का ही नाम है। अन्यथा पलायनवादी को कायर भी कहा जाता है।