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आसमान में उड़ती परियां

हवाई यात्राओं में समय की बचत के अतिरिक्त भी कई सुविधाएं हैं। ये आरामदायक होती हैं। अधिकांश यात्रियों को आसमान के सुंदर नजारे तो कुछ एक को किसी-किसी एयर लाइंस में सीट के सामने लगाए गए छोटे-छोटे टेलीविजन के स्क्रीन अधिक मनोरंजक लगते हैं। विशिष्ट भोजन व पेय भी कई लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। छोटी दूरियों की यात्रा में कई बार तो एयरपोर्ट पर सिक्योरिटी चैक और चैक-इन में उड़ान से अधिक समय लग जाता है मगर फिर भी इसका एक विशिष्ट आकर्षण है। इसके द्वारा समाज में रूतबा डाला जाता है। पहले की अपेक्षा अधिक उपलब्धता एवं सस्ती हवाई यात्रा के कारण मध्यवर्गीय परिवारों द्वारा इसका उपयोग बढ़ा है, इसके बावजूद इसे आज भी बड़े लोगों की पहचान कहा जा सकता है। और फिर भी कोई कसर बाकी रह गयी हो तो खूबसूरत एयर होस्टेस की उपस्थिति उसे पूरा कर देती है। बड़े विशाल, आधुनिक, साफ-सुथरे एयरपोर्ट और उसमें काम करने वाले अधिकांश लोग युवा और ऊर्जा से भरे मिलेंगे। यह एक अलग दुनिया प्रतीत होती है। चकाचौंध व ग्लैमर से भरी हुई। कुछ एक एयरलाइंस ने सस्ते के चक्कर में विमान में खाद्य व पेय पदार्थ बेचने का प्रबंध जरूर कर रखा है, मगर यह बहुत अटपटा लगता है। यह मैं पूर्व में भी अपने साप्ताहिक लेखों में कह चुका हूं और इस बार भी कहूंगा कि यह हवाई यात्रा की गरिमा के अनुरूप नहीं। प्रतिस्पर्द्धा के युग में पैसे की बचत आवश्यक है। लेकिन यह जानने पर कि हर एक यात्री को दिया जाने वाला भोजन, सामान्यतः जिसकी कीमत सौ-दो सौ से अधिक नहीं होती, इसलिए अगर इन्हें टिकट की कीमत के साथ जोड़ दिया जाए और खान-पान मुफ्त में दिया जाए तो बेहतर होगा। यात्रियों को भी इसमें कोई आपत्ति नहीं होगी, चूंकि समय काटने व जरूरत के हिसाब से हर एक यात्री जब कुछ न कुछ खरीदता ही है तो उसे इसका पैसा टिकट के साथ देने में तकलीफ नहीं होनी चाहिए। कम से कम लंबी दूरी की सेवाओं में इनका प्रयोग किया जाना चाहिए। अन्यथा वायुयान में खाने-पीने का सामान बेचती व पैसों का लेन-देन करती ये आसमान की परियां अच्छी नहीं लगतीं। यह कई बार न तो गरिमा के अनुरूप लगता है न ही व्यावहारिक दिखाई देता है।

वर्तमान में महिलाओं का विमान परिचारक होना उनकी आत्मनिर्भरता व आत्मसम्मान की पहचान है। आज इस तरह की नौकरी में होना समाज में रुतबे की बात है। मगर इसके इतिहास को देखें, जो कि ज्यादा पुराना नहीं, मात्र 70-75 वर्ष पूर्व की बात है, तब यह इतना सुगम व सरल नहीं था। ट्राली-डाली के नाम से जानी जाने वाली यह महिलाएं प्रारंभ में मूल रूप से नर्स हुआ करती थीं। आज हर एयरलाइंस की परिचारिकाओं के व्यक्तित्व में खूबसूरती होना एक विशिष्ट गुण के साथ आवश्यक भी है। मगर प्रारंभ में इनका विमान सेवा में प्रयोग सिर्फ यह दिखाने के लिए किया गया था कि जब महिलाएं इसमें सफर कर रही हैं तो यह कितनी सुरक्षित हो सकती है। साथ ही इनका कार्य सेवा का था जिसके लिए नारी जानी जाती है। आज भी यह सेवा व सुरक्षा से जुड़ा है। सौंदर्य के साथ ही इनका युवा होना एक अतिरिक्त बिंदु है जो मुख्य कार्य को और अधिक प्रभावकारी व असरदार बनाता है। इस मुद्दे पर सरकारी एयरलाइंस कंपनियों को बख्श देना चाहिए। यहां कर्मचारी-अधिकारी के एक उम्र तक स्थायी बने रहने का कानूनी अधिकार है। यूनियन का वर्चस्व, एक अलग चर्चा का विषय है। वैसे भी उम्र के बढ़ते ही किसी को भी उसके कार्य से हटाना मानवीय नहीं होगा। लेकिन एक उम्र के बाद परिवार-बच्चों की जिम्मेदारियों के साथ यह नौकरी इतनी आसान नहीं रह जाती होगी। हर दूसरे दिन लंबी यात्राओं पर निकलने में महिलाओं को मुश्किलें आती होंगी। फिर एक ही तरह का काम लंबे समय तक करते रहने में उकताहट भी हो सकती है। इसलिए शासकीय एयरलाइंस में अनुभवी परिचारिकाओं को इच्छानुसार कोई और कार्य दिया जा सकता है। अन्यथा उम्र अधिक होने पर भी कम से कम मुस्कुराने की कोशिश तो की ही जा सकती हैं। मगर शासकीय विमान सेवाओं में कई बार ऐसा दिखाई नहीं देता। विमान परिचारिकाओं द्वारा मुस्कुरा कर अतिथि का स्वागत और उनकी मदद व सहयोग के लिए तत्पर होना उनके कार्य का प्रथम व विशिष्ट क्षेत्र है, जिसकी अनुपस्थिति पर इस कार्य से संबंधित कर्मचारी/अधिकारी के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिह्न लग जाता है। लेकिन फिर सरकारी हवाई सेवाओं का अकेले कोई दोष नहीं। सरकार द्वारा नियंत्रित अन्य सभी सेवा क्षेत्रों में भी कर्मचारियों-अधिकारियों का यही हाल है। इनमें अपने उपभोक्ता के लिए अतिथि वाला कोई भाव नहीं। यहां ठीक उसी तरह से बर्ताव किया जाता है जिस तरह से सड़क चलते आम अनजान लोगों के साथ व्यवहार किया जा सकता है, एकदम रूखा। बहरहाल, डर या मजबूरी में ही सही, मगर निजी क्षेत्र में ऐसा नहीं है। हो सकता है अभी सारी प्राइवेट एयरलाइंस नयी हैं और उनका अधिकांश स्टाफ भी युवा। देखने वाली बात यह होगी कि बढ़ती उम्र के साथ कार्य कर रहे अपने कर्मचारियों के साथ वो क्या फैसला करते हैं?

इन बढ़ते हुए हवाई यात्रा के जाल ने रोजगार का एक नया क्षेत्र पैदा किया है। उड़ान के लिए आवश्यक पायलट, ग्राउंड इंजीनियर एवं सहयोगी कर्मचारी एवं यात्रा के दौरान यात्रियों की सेवा एवं सहयोग के लिए कार्यरत केबिन कर्मचारी। हिन्दुस्तान की तकरीबन सभी एयरलाइंस की सभी दिशाओं में यात्रा करने पर एक बात जो सामान्य रूप से दिखाई दी कि अधिकांश एयर होस्टेस युवा और आकर्षक व्यक्तित्व की धनी तो होती हैं मगर ऐसा लगता है कि यहां पर खूबसूरती के पैमाने को मात्र त्वचा के गोरेपन और अंग्रेजी बोलने की महत्वता से जोड़ दिया गया है। ध्यान से देखें, आपको शायद ही कोई एयर होस्टेस श्याम वर्ण की मिलेंगी। काले रंग की तो यहां कल्पना भी नहीं की जा सकती। दक्षिण की विमान सेवाओं में भी ऐसा ही कुछ नजारा दिखाई देगा। जो थोड़ी-बहुत हल्के रंग की हुईं भी तो वे भी मेकअप के नाम पर ब्यूटी पार्लर और तमाम क्रीमों को लगाकर अपने आप को श्वेत वर्ण घोषित करने का सफल प्रयास करती हैं। असल में यह हमारी संकुचित और गुलाम मानसिकता को प्रदर्शित करता है। जिसका एक रूप दक्षिण की नायक-नायिकाओं में भी देखा जा सकता है। श्याम वर्ण वाले दक्षिण भारत में भी वहां के नायक-नायिकाओं को फिल्म में फोटोग्राफी के इंतजाम से जबरन गौर वर्ण का बनाकर दिखाया जाता है। जबकि अधिकांश सितारे वास्तविकता में गहरे रंग के मिलेंगे। ऐसा क्यों? क्या खूबसूरत और आकर्षक होने के लिए गौर वर्ण हमारा पैमाना है? या पश्चिमी देशों की संस्कृति व सभ्यता के वर्चस्व को हम चुपके से स्वीकार करते हैं? असल में देखें तो यह एक बीमार मानसिकता है। अन्यथा गेहुंए रंग की भारतीय नारी अधिक आकर्षक और सौंदर्य से परिपूर्ण मानी जाती हैं। इनका अपना एक अलग आकर्षण है। श्याम वर्ण की कई कन्याएं अपने विशिष्ट नाक-नक्श एवं डील-डौल के कारण प्रभावशाली व्यक्तित्व की धनी लगती हैं जबकि गौर वर्ण वाली कई महिलाएं ध्यान से देखने पर आकर्षणविहीन होती हैं।

जिस तरह से स्थानीय भाषा में बात करने पर विज्ञापनों का अधिक असर देखा जा रहा है, उपभोक्ता पर प्रभाव पड़ता है। उसी तरह श्याम और गेहुंए रंग की परिचारिकाएं होने पर यात्रीगण उन्हें अपने जैसा महसूस करेंगे। अपना-सा पायेंगे। उनसे और अधिक निकटता महसूस होगी। जिस तरह पूर्वोत्तर क्षेत्र में जाने पर विशिष्ट नाक-नक्श की एयर होस्टेस के देखे जाने पर वहां की संस्कृति का अहसास होता है। ठीक उसी तरह से दक्षिण में जाने पर वहां की वेशभूषा वाली महिला एयर होस्टेस दिखाई देने पर यह एक बेहतर प्रस्तुति होगी। वैसे भी यह सर्वविदित सत्य है कि आदमी का आकर्षण उसके रंग और चेहरे से अधिक उसकी भावना, मुस्कुराहट और आंखों से बयां होता है। और विमान कर्मचारियों का तो सेवा-भाव से जुड़ा होना अति आवश्यक है। ऐसे में इन परिचारिकाओं के चुनाव के वक्त उनके रंग से अधिक चेहरे के भाव को पढ़ा जाना चाहिए। अन्यथा एयर होस्टेस के रूप में कई हिन्दुस्तानी गोरी मेमो को विमान में सामान्य रंग-रूप वाले युवक-युवती के साथ तिरस्कृत भावना से व्यवहार करते हुए देखा जा सकता है। ऐसे में यात्री अपने आप को कटा हुआ महसूस करता है। प्रतिस्पर्द्धा के इस युग में जब हर एयरलाइंस को अधिक से अधिक यात्रियों की आवश्यकता है और हिन्दुस्तान का बड़ा वर्ग श्याम वर्ण का है तो ऐसे में यात्रियों से सहज संपर्क बढ़ाने के लिए एयरलाइंस मैनेजमेंट को इस ओर भी ध्यान देना चाहिए। और विभिन्न नारी संगठन उन विज्ञापनों पर ध्यान देंगी जहां एक अच्छी नौकरी के लिए सांवली लड़की को क्रीम के द्वारा पहले गोरा बनना सिखाया जाता है।