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ओबामा की जीत

अमेरिकी राष्ट्रपति के लिए ओबामा की उम्मीदवारी एक ऐतिहासिक घटना है। इसकी खुशी हिन्दुस्तान में भी मनायी जानी चाहिए। पढ़कर पाठकों को थोड़ा अटपटा लगा होगा, लेकिन यह समय की मांग है। हो सकता है ऐसा हुआ भी हो। मेरे परिवार में भी यह जश्न का कारण बना। दोनों बेटियों ने खुलकर नाच किया था। उल्लास इतना अधिक था मानों यह उनकी अपनी जीत हो या फिर उनके देश से संबंधित कोई महत्वपूर्ण घटना। जबकि यह दोनों ही कारण नहीं थे न ही इसके पीछे कोई राजनीतिक सोच थी। यह सामाजिक व्यवस्था से जुड़ा हुआ मुद्दा है, भावनात्मक अहसास जिससे जाने-अनजाने हम सब रूबरू होते हैं। किसी एक पार्टी का मात्र उम्मीदवार तय होने के लिए इतनी लंबी, घनघोर, बोरियत से भरी हुई प्रकिया, यह उबाऊ समय था। लेकिन अमेरिकी प्रजातांत्रिक व्यवस्था की सदृढ़ता का आधार है यह। शायद ऐसा पहले कभी न हुआ हो। इसके बावजूद अंत तक उत्सुकता, उत्तेजना और ऊर्जा बनी रही थी। इसके प्रमुख कारण थे दोनों प्र्रतिद्वंद्वी। एक तरफ अश्वेत अमेरिकी तो दूसरी तरफ हिलेरी क्लिंटन अर्थात एक महिला। अग्रणी व विकसित राष्ट्र, स्वतंत्र समाज व उन्नत विचारधारा, परिपक्व प्रजातंत्र का दम भरता अमेरिका आज तक एक भी अश्वेत या महिला राष्ट्रपति नहीं पैदा कर पाया। थोड़ा आश्चर्य होता है। मगर कटु सत्य है। दोनों असामान्य उम्मीदवार के होने से ही शायद अमेरिकी अवाम भी इतने दिनों तक अनिश्चितता की स्थिति में रहा। और टक्कर कांटे की रही। लेकिन फिर अंत में ओबामा की जीत को मैं अपने ही घर में बेहतर समझ सका। प्रारंभ से ही मैंने देखा था कि दोनों बेटियों के महिला वर्ग से होने के बावजूद उनका झुकाव ओबामा की तरफ ज्यादा है। हिलेरी के प्रति भावनात्मक लगाव जरूर था लेकिन दिल से ओबामा की जीत के लिए प्रार्थना की जाती। तो ऐसी क्या वजह है जो ऐसा हुआ? इसके कारणों को जानने पर यकीनन हिन्दुस्तान का आवाम ही नहीं एशियायी मूल के लोग भी कहीं न कहीं खुश नजर आयेंगे।

जिन्होंने पश्चिमी देश की यात्रा की है वह इस बात से भलीभांति परिचित हैं कि अश्वेतों को वहां आज भी किस निगाह से देखा जाता है। जो अपनी इज्जत व स्वाभिमान को ताक में रखने वाला मोटी चमड़ी का भारतीय हो तो यह दीगर बात है। अन्यथा कोई भी सामान्य जन वहां रंगभेद के दबाव को आज भी महसूस कर सकता है। हिन्दुस्तान के गोरी से गोरी चमड़ी के लोगों को भी वहां बड़ी हेय दृष्टि से देखा जाता है। आधुनिक और विकसित कहलाने वाले इस युग में यह विचार किसी काले धब्बे से कम नहीं। अति प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के धनी भारतीय को भी जब वहां दूसरे दर्ज का सा अनुभव होता है तो जीवन शापित लगने लगता है। ऐसा जरूरी नहीं कि इस रंगभेद के कड़वे स्वाद को वहां जाकर ही अनुभव किया जाये, उसे यहां भारत में भी देखा, समझा और महसूस किया जा सकता है। काले-गोरे का सामाजिक भेद हिन्दुस्तान में भी इतना ज्यादा है कि हिन्दुस्तानी श्वेत वर्ग के लोग अंग्रेजी गोरो जैसा व्यवहार करते हैं। यह हमारे समाज का दुर्भाग्य है। इससे कहीं अधिक विसंगति पश्चिमी समाज में है। ऊपर से चाहे सब ठीक लगे मगर सतह के नीचे बहने वाली इस भावनाओं को लंबे समय तक रहने पर महसूस किया जा सकता है।

ओबामा की जीत इन्हीं दुर्भाग्यपूर्ण लोगों के विद्रोह का प्रतीक है जो युगों से उनके दिल में सुलग रहा है। यह विरोध इतना तीव्र है कि हिलेरी की जगह अगर कोई और उम्मीदवार होता तो शायद इतना वक्त नहीं लगता। यह भी एक अनहोती बात थी कि इतने विकसित राष्ट्र में आज तक कोई महिला राष्ट्रपति नहीं चुनी गयी। यह कहना कि कोई बेहतरीन उम्मीदवार अब तक नहीं मिला, गलत होगा। क्या करोड़ों में कोई एक नहीं। यह भी एक वजह थी जो अमेरिकी जनता के लिए दोनों ही उम्मीदवार अपने आप में अहम बन गये। विश्व प्रतिक्रिया भी देखें तो महिलाएं हिलेरी के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ी जरूर होंगी लेकिन अश्वेत महिलाएं ओबामा की उपस्थिति मात्र से रोमांचित होंगी। और फिर ये ही नहीं, प्रगतिशील विचार वाले, खुली सोच वाले, परिवर्तन के समर्थक श्वेत भी ओबामा के समर्थन में आये होंगे जिन्होंने पारंपरिक व रूढ़िवादी लोगों के विरोध में एकजुट होने में कोई कसर नहीं छोड़ी होगी।

विश्व राजनीति की दृष्टि से भी यह यकीनन एक महान ऐतिहासिक घटना है। आगे ओबामा की जीत सरल तो नहीं लेकिन कठिन भी नहीं लग रही। और अगर वो राष्ट्रपति के पद पर विराजमान होते हैं तो यह एक दूसरी बड़ी घटना होगी। इसके दूरगामी परिणाम होंगे। आज हमें यह साधारण बात लगती है लेकिन आने वाली पीढ़ियों को इस बात का अहसास होगा जब उन्हें यह बताया जायेगा कि यह बहुत बड़ी घटना थी। आने वाली पीढ़ियां इतिहास के पन्नों में इसे विशिष्ट रूप से पढ़ा करेंगी। शैक्षणिक व्यवस्थाओं में इस संदर्भ पर चर्चा हुआ करेगी, परीक्षा में प्रश्न पूछे जायेंगे। ओबामा की हार-जीत जो भी हो लेकिन वे इतिहास के पन्नों में सदा के लिए अमर हो चुके हैं। यह पहली बार हुआ है कि कोई अश्वेत किसी प्रमुख पार्टी का उम्मीदवार बना। अगर वो जीत जाते हैं तो एक और इतिहास रचेंगे। अन्यथा मात्र उनकी उम्मीदवारी रंगभेद की गुलामी से मुक्त होने की जीत है। पश्चिमी सभ्यता के प्रभुत्व की सोच वाली मानसिकता की हार है। ऊपर बैठा काला जब गोरों को आदेश देगा तो अन्य लोगों की भावनाएं अपने आप बदल जायेगी। गोरे होने का अहम्‌ टूटेगा। लोगों के मन में समानता की भावना आयेगी। उनकी जीत से एशिया और अफ्रीकी मूल के लोग भी पश्चिमी देश में स्वाभिमान से खड़े हो सकेंगे। रंगभेद की भावना अंदर ही अंदर इतनी तीव्र है कि ओबामा भी यह कहने से नहीं रह पाये, ‘हम एक इतिहास रच चुके और दूसरा रचने की तैयारी में है।’

ऐसा नहीं कि अश्वेतों में क्षमता या गुण की कोई कमी है। शारीरिक और मानसिक रूप से वे भी इसी प्रकृति की देन है। वे भी हर क्षेत्र में उतने ही सक्षम हैं जितने की गोरे हुआ करते हैं। हां, दोनों के मूल समाज के गरीबी और अमीरी के पीछे कहीं-कहीं प्रकृति की नैसर्गिक व्यवस्था प्रमुख कारण जरूर बनी है। इन सबके बावजूद खेलकूद, विज्ञान, साहित्य, मनोरंजन यहां तक कि शक्ति की दुनिया में भी अश्वेतों ने भरपूर नाम कमाया है। अगर कोई क्षेत्र छूटा था तो वह था विश्व राजनीति का शीर्ष स्थान। वो अब दूर नहीं। ओबामा ने अपने चुनाव के प्रथम दिन ही अब्राहम लिंकन व उनकी अत्यधिक लोकप्रिय भाषण ‘हाउस डिवाइडेड’ को याद किया था। अब्राहम लिंकन की बातें सत्य हुई और उनका सपना साकार हुआ। आज वे शायद कहीं होते तो सबसे अधिक प्रसन्न होते। ओबामा अत्यधिक सहज व सामान्य पुरुष दिखाई देते हैं। कोई अहम्‌ नहीं, कोई तामझाम नहीं लेकिन पक्के राष्ट्रभक्त। उनका व्यक्तित्व आकर्षक नहीं, लेकिन वे अपनी सरलता से अत्यधिक लोकप्रिय होते जा रहे हैं। भाग्यशाली भी हैं जो उन्हें अवसर मिला। यह पहला मौका है जब कोई सिनेटर पहली बार में ही सीधे राष्ट्रपति का उम्मीदवार बन जाए।

हिलेरी क्लिंटन ने भी अपने व्यक्तित्व में जबरदस्त सुधार किया है। पिछले हफ्ते ओबामा के समर्थन में उनके भाषण को सुना। उन्होंने पिछले पांच-दस वषों में एक लंबा सफर तय किया है। वह एक सुलझी हुई परिपक्व राजनीतिज्ञ के रूप में उभरी हैं। उन्होंने अपने पति के साथ बहुत कुछ सीखा है तो दुःख भी कम नहीं झेले। लेकिन उनके व्यक्तित्व में निखार ही आया है। उनका अमेरिकी उम्मीदवारी की दौड़ से हारना विश्व की महिलाओं की हार हो सकती है। लेकिन अभी उनके पास उम्र हैं और संभावनाएं भी। मगर वे भी इस बात से सहमत होंगी कि इस रंगभेद ने विश्व को दो वर्गों में बांट रखा है। तभी तो अधिकांश महिलाएं, जो उनके साथ हैं और जिनका रंग प्राकृतिक रूप से सफेद नहीं, वो भी कहीं न कहीं अपने आप को ओबामा के साथ खड़ा हुआ महसूस करती होंगी। इसी भावना ने तो ओबामा की जीत को सुनिश्चित किया और आगे भी मुख्य भूमिका अदा करेगी।