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हार्डवेयर बनाम सॉफ्टवेयर

संचार-क्रांति का दौर है। वर्तमान को इलेक्ट्रॉनिक युग कहा जा सकता है। कंप्यूटर ने जीवनशैली बदलकर रख दी है और समाज में उथल-पुथल मचा दिया है। इस छोटे से वैज्ञानिक उपकरण ने कुछ ही सालों में, वर्षों से चले आ रहे पोस्टकार्ड, लिफाफे और चिट्ठियों को अपने अंदर समेट लिया। इस रफ्तार से वो समय दूर नहीं जब डाकघर लुप्त हो जायेंगे। पुस्तकों का वर्तमान स्वरूप समाप्त होता नजर आता है। और बड़े-बड़े पुस्तकालय अंतिम सांसें गिनते हुए प्रतीत होते हैं। विकीपिडिया धीरे-धीरे संपूर्ण ज्ञान भंडार को निगलता प्रतीत होता है। समूची बैंकिंग प्रणाली ई-बैंकिंग पर आकर अपना रास्ता बदलती नजर आती है और हम अर्थव्यवस्था में एक नये तरह के युग का शुभारंभ कर चुके हैं। जहां कागज के नोट और विभिन्न धातुओं के सिक्के नदारद होंगे। और भी अनेक उदाहरण दिये जा सकते हैं। चारों ओर जिधर भी नजर जाती है, सचमुच बड़ी तेजी से परिवर्तन हो रहा है। वास्तव में एक चूहे के आकार के माउस के एक क्लिक पर पूरी दुनिया आपके सामने उपस्थित है। कंप्यूटर में लगी अति सूक्ष्म चिप इतनी शक्तिशाली हो सकती है, यकीन नहीं होता।

इस कंप्यूटर के दो भाग हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर में से एक शरीर तो दूसरे को आत्मा कहा जा सकता है। कंप्यूटर ने अपनी विकास प्रक्रिया में इन दोनों क्षेत्रों में अभूतपूर्व काम किया है और अनगिनत सफलताएं अर्जित की हैं। एक तरफ तो इनका आकार दिन-प्रतिदिन छोटा होता जा रहा है दूसरी ओर ये शक्तिशाली होते जा रहे हैं। बड़े-बड़े काम जो पहले मुश्किल से हो पाते थे, गुणवत्ता और सही होने पर संदेह बना रहता था, कंप्यूटर की सहायता से बड़ी आसानी से हल हो जाते हैं। और पैमानों पर खरे उतरते हैं। कंप्यूटर की दुनिया ने मानवीय जीवन के हर क्षेत्र में घुसपैठ की है। कई बार तो ऐसा लगता है कि मनुष्य जीवन कंप्यूटराइज्ड और समाज कंप्यूटरमय हो गया है। एक सॉफ्टवेयर कंपनी के सेमिनार में भाग लेने के दौरान यह प्रश्न अनायास ही मन में उभरा था कि हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर में कौन अधिक महत्वपूर्ण है? यूं तो दोनों ही अपना-अपना महत्व रखते हैं। ये एक-दूसरे से पूरी तरह जुड़े हुए और परस्पर निर्भर भी हैं व एक-दूसरे के पूरक कहे जा सकते हैं। लेकिन फिर न जाने कैसे और क्यों जल्दी ही अहसास हुआ कि सॉफ्टवेयर व्यवहारिक रूप से अधिक जरूरी और ज्यादा महत्वपूर्ण है।

एक छोटा-सा अवलोकन करें, और उसका उदाहरण बनाकर हम इस बात को आसानी से बयान कर सकते हैं। हममें से अधिकांश ने देखा होगा, सुना होगा, पढ़ा होगा कि शक्तिशाली गुंडा उर्फ डॉन अमूमन सामान्य कद-काठी के हुआ करते हैं, जबकि उनके साथ उनकी सुरक्षा में लगे उनके बॉडीगार्ड बलिष्ठ भुजाओं वाले शारीरिक रूप से अधिक शक्तिशाली और लंबे-चौड़े हुआ करते हैं। यहां पर यह कहकर बड़ी आसानी से समझा जा सकता है कि आदमी का शरीर मजबूत होने से सब कुछ नहीं होता, उसके अंदर जोश, ऊर्जा व हिम्मत होनी चाहिए। हौसला शारीरिक शक्ति पर सदा हावी होता है। यहां पर शरीर एक हार्डवेयर के समान है जबकि उसके अंदर की आत्मा और दिमाग सॉफ्टवेयर है। बाडीगार्ड्स का हार्डवेयर तो शक्तिशाली होता है मगर सॉफ्टवेयर कमजोर होता है। जबकि प्रमुख गुंडे उर्फ डॉन का दिमाग अर्थात सॉफ्टवेयर अधिक विकसित होता है ऐसे में हार्डवेयर थोड़ा कमजोर हो तो भी चल जाता है। एक सामान्य मशीन पर कुशलतापूर्वक बेहतर और एडवांस सॉफ्टवेयर चलाने पर अच्छे परिणाम लिये जा सकते हैं जबकि एक मजबूत मशीन पर कमजोर सॉफ्टवेयर चलाने पर कुछ विशेष हासिल नहीं होता।

इसी को व्यावहारिक रूप से जीवन में भी देखने पर एक बार फिर प्रामाणित किया जा सकता है कि सॉफ्टवेयर हार्डवेयर की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि एल्गजेंडर ने विश्वविजेता कहलाने के लिए कई भीषण युद्ध लड़े और अधिकांश में विजयी होकर महान योद्धा कहलाया। एल्गजेंडर उर्फ सिकंदर महान स्वयं कद-काठी के हिसाब से बहुत अधिक लंबा-चौड़ा नहीं था जबकि उसके आम योद्धा उसकी तुलना में कहीं अधिक तंदुरुस्त थे। कहा जाता है कि हिंदुस्तान के सफल और लोकप्रिय राजाओं में से एक महाराजा रणजीत सिंह, दूसरे आम सैनिकों की तुलना में लंबाई-चौड़ाई और आकार में सामान्य कहे जा सकते हैं लेकिन युद्ध-नीति और जोश में वे सभी से कहीं आगे होते थे। युद्ध-कला में वे सफल रणनीतिकार थे और इसीलिए युद्ध के दौरान कुशल नेतृत्व प्रदान करते थे। वे कुशल प्रशासक थे इसीलिए लोकप्रिय हुए। महाराज छत्रपति शिवाजी मुगलों के कई सेनापतियों के सामने सीने की ऊंचाई तक ही पहुंच पाते थे लेकिन अपने चतुर-चालाक और चुस्त दिमाग से उन्होंने बड़े-बड़े मुगल सेनानियों को मिनटों में धराशायी कर दिया। उनकी छोटी-सी सेना मुगल साम्राज्य की विशाल सेनाओं को हर तरह से परेशान करने में सक्षम थी। मात्र उनकी हिम्मत और लक्ष्य ने विशाल मराठा साम्राज्य की स्थापना की। यहां युद्धनीति को सॉफ्टवेयर के रूप में लिया जाना चाहिए जबकि सेनाएं तो हार्डवेयर हैं जिसमें जान न फूंकी जाये तो वो निरर्थक है। ऊर्जाविहिन सैनिक व्यर्थ होते हैं और नेतृत्वविहीन सेना, फिर चाहे वो विशाल ही क्यूं न हो, तितर-बितर होने में समय नहीं लगाती। आधुनिक विश्व इतिहास में हिटलर को बेशक एक खलनायक के रूप में ही याद किया जाता हो मगर इस तथ्य को भी नहीं झुठलाया जा सकता कि उसकी एक आवाज पर नाजी सेना मरने मारने के लिए उतारू हो जाती थीं। और वो जीतते हुए, द्वितीय विश्वयुद्ध में, मास्को के दरवाजे तक पहुंच गयी थी। और अगर राजधानी में प्रवेश कर उसे कब्जा कर लेती तो इतिहास किसी और रूप में लिखा जाता। यहां हिटलर भी लंबाई-चौड़ाई में बहुत साधारण कद-काठी का था मगर आवाज और जोश से भरा हुआ।

शरीर भी क्या है? हम तभी तक जीवित कहलाते हैं जब तक सांसें चल रही हैं। आत्मा के निकलते ही शरीर मिट्टी में मिल जाता है। कई कमजोर और बीमार लोगों ने आत्मबल पर अभूतपूर्व सफलता अर्जित की और जीवन को अर्थपूर्ण बनाया। वहीं कई स्वस्थ और हट्टे-कट्टे मनुष्य निरर्थक जीवन जी-कर यूं ही चले जाते हैं। बड़े-बड़े राजमहल बिना प्रेम और जीवन के सूने लगते हैं जबकि कई झोपड़ियां भी लोगों की हंसी और मस्ती से जीवंत हो उठती हैं। घर दीवारों और फर्नीचर से नहीं उसमें रहने वाले लोगों के आचरण और व्यवहार पर बनता और संवरता है और उसी पर निर्भर करता है। योगी और भोगी, पुलिस और अपराधी, दोनों के शरीर तो एक समान होते हैं मगर सोच अलग-अलग होने से ही वे अलग पहचान बनाते हैं। मनुष्य के अंदर बैठी आत्मा ही उसे लालची और जानवर बना सकती है तो वही उसे महान संत के आसन पर भी विराजमान कर सकती है। सॉफ्टवेयर द्वारा ही विनाश को निर्माण में परिवर्तित किया जा सकता है। आत्मा ही मनुष्य को परमात्मा के नजदीक पहुंचा सकती है।